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भारत में अस्पताल माफिया और मेडिक्लेम ठगी का पर्दाफाश | मरीजों की लूट का सच

🏥 मेडिक्लेम और अस्पताल माफिया से सावधान

“सत्यमेव जयते” — अब सिर्फ नारा नहीं, चेतावनी है

भारत का स्वास्थ्य क्षेत्र आज खतरनाक मोड़ पर खड़ा है। भारत की संसदीय समिति ने हाल ही में स्वीकार किया है कि देश का स्वास्थ्य ढांचा तेजी से भ्रष्टाचार और मुनाफाखोरी की जकड़ में आ गया है।

🔪 आधे से ज्यादा ऑपरेशन झूठे या अनावश्यक

ज़ी न्यूज़ में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, भारत में करीब 44% ऑपरेशन फर्जी या बिना जरूरत के किए जाते हैं। लगभग आधी सर्जरी सिर्फ मरीजों और सरकार से पैसे लूटने के लिए की जाती हैं।

  • 55% हार्ट सर्जरी
  • 48% हिस्टरेक्टमी (गर्भाशय निकालने की सर्जरी)
  • 47% कैंसर सर्जरी
  • 48% घुटना प्रत्यारोपण
  • 45% सी-सेक्शन (कृत्रिम प्रसव)

महाराष्ट्र की कई बड़ी अस्पतालों की जांच से पता चला कि सीनियर डॉक्टरों को महीने का एक करोड़ रुपये तक वेतन दिया जाता है ताकि वे मरीजों को अनावश्यक टेस्ट और ऑपरेशन करवाएं।

⚰️ मृतकों पर इलाज – लूट की हद

BMJ Global Health और टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट में पाया गया कि कई अस्पतालों में मृत मरीजों को जीवित दिखाकर इलाज किया जाता है, ताकि बीमा का पैसा वसूला जा सके।

एक केस में 14 साल के मृत बच्चे को “जिंदा” बताकर एक महीने वेंटिलेटर पर रखा गया और भारी बिल बनाया गया। बाद में अस्पताल ने मात्र ₹5 लाख देकर मामला दबा दिया।

💰 इंश्योरेंस कंपनियों का खेल

भारत में करीब 68% लोगों के पास मेडिक्लेम इंश्योरेंस है, लेकिन क्लेम करते समय ज्यादातर को रिजेक्ट या आधा भुगतान किया जाता है। लगभग 3000 अस्पतालों को ब्लैकलिस्ट किया गया है जिन्होंने फर्जी क्लेम किए।

कोरोना काल में भी कई अस्पतालों ने फर्जी कोविड केस दिखाकर करोड़ों रुपये का बीमा ठगा।

🧠 मानव अंगों की तस्करी – सफेद कोट में काला धंधा

इंडियन एक्सप्रेस (2019) की रिपोर्ट के अनुसार, कानपुर की संगीता कश्यप को नौकरी के बहाने दिल्ली बुलाया गया और फोर्टिस अस्पताल में भर्ती कराया गया। समय रहते उसने “डोनर” शब्द सुन लिया और वहां से भाग निकली। बाद में पता चला कि यह अंतरराष्ट्रीय अंग तस्करी गैंग थी जिसमें डॉक्टर, पुलिस और मेडिकल स्टाफ शामिल थे।

🏥 रेफरल स्कैम – मरीज नहीं, कमीशन ज़रूरी

कई डॉक्टर बड़े अस्पतालों के “रेफरल पार्टनर” बनकर मरीज भेजते हैं। मुंबई की कोकिलाबेन अस्पताल ने तो लिखा था — “40 मरीज भेजो ₹1 लाख, 75 मरीज भेजो ₹2.5 लाख।”

🔬 डायग्नोसिस स्कैम – झूठे टेस्ट, असली बिल

बेंगलुरु की लैब्स पर छापों में ₹100 करोड़ और 3.5 किलो सोना मिला — यह डॉक्टरों को कमीशन देने के लिए था। देश में 2 लाख से ज्यादा लैब्स हैं, लेकिन सिर्फ 1000 ही प्रमाणित हैं। बाकी फर्जी रिपोर्ट बना कर जनता को लूटती हैं।

💊 फार्मा कंपनियों की रिश्वत संस्कृति

20-25 बड़ी दवा कंपनियां हर साल ₹1000 करोड़ से ज्यादा डॉक्टरों पर खर्च करती हैं — विदेश यात्राएं, होटल, नकद इनाम सब शामिल है। “डोलो” गोली बनाने वाली कंपनी ने कोरोना काल में ₹1000 करोड़ दिए थे।

एमक्योर की कैंसर दवा अस्पताल को ₹1950 में मिलती है, लेकिन मरीज से ₹18,645 वसूला जाता है। (स्रोत: India Today)

⚖️ मेडिकल काउंसिल की नाकामी

MCI (मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया) डॉक्टरों पर नियंत्रण रखने में असफल रही है। 2016 की समिति ने कहा कि MCI को कॉलेज खोलने में रुचि है लेकिन डॉक्टरों के भ्रष्टाचार पर रोक लगाने की नहीं।

  • डॉक्टर को जेनरिक दवा का नाम लिखना चाहिए।
  • इलाज शुरू करने से पहले फीस बताना और सहमति लेना आवश्यक है।
  • हर मरीज का रिकॉर्ड 3 साल तक रखना जरूरी है।
  • भ्रष्ट या अनैतिक व्यवहार को सार्वजनिक करना चाहिए।

🏛️ सरकारी योजनाओं में भी लूट

कई जगहों पर बिनजरूरी भर्ती और इलाज दिखाकर सरकारी योजनाओं से करोड़ों रुपये निकाले जाते हैं। अस्पताल इलाज से ज्यादा बिल पर ध्यान देते हैं।


⚠️ निष्कर्ष: जागो भारत!

अस्पताल, डॉक्टर, बीमा कंपनियां और दवा उद्योग — सब अब व्यापार का बाजार बन चुके हैं। जरूरत है जनता के जागरूक होने और सख्त नियंत्रण की।

👉 यह संदेश हर नागरिक तक पहुँचना चाहिए ताकि कोई और परिवार इन जालसाजियों का शिकार न बने।

🇮🇳 जनहित में — देशसेवा ✍🏼

सत्यमेव जयते 🙏

सावधान भारत — जागरूक बनो, सुरक्षित रहो।

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